Monday, December 22, 2008

चर्चा में

चर्चा में
सतरहवाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन, बरेटा (पंजाब), 11.10.2008

पंजाबी त्रैमासिक‘मिन्नी’, अमृतसर व ‘मिन्नी कहानी विकास मंच, बरेटा’ के संयुक्त तत्वावधान में सतरहवाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन दिनांक 11.10.2008 को के.सी. एम. गर्ल्ज़ कालेज,बरेटा के प्रांगण में आयोजित किया गया। देश के विभिन्न प्रदेशों से लघुकथा लेखक व आलोचक इस सम्मेलन में पधारे।
सम्मेलन का प्रथम सत्र सायं 5.00 बजे प्रारंभ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता सर्वश्री सूर्यकांत नागर (इंदौर), सुकेश साहनी (बरेली), श्याम सुंदर दीप्ति (अमृतसर), बलजिंदर सिंह व प्रिंसिपल बालकृष्ण कटौदिया ने की। ‘मंच के सरपरस्त प्रिंसीपल दर्शन सिंह बरेटा ने आए हुए मेहमानों का स्वागत किया। सत्र की शुरुआत भवानी शंकर गर्ग ने नामवर पंजाबी शायर सुरजीत पातर की गज़ल ‘मैं राहां ते नहीं तुरदा, मैं तुरदा हाँ ता राह बनदे’ गाकर की। तदुपरांत पंजाबी आलोचक निरंजन बोहा ने दर्शन सिंह बरेटा, जगदीश राय कुलरियां व अश्विनी खुडाल द्वारा संपादित पंजाबी लघुकथा संकलन ‘पंजाबी मिन्नी कहानी दा वर्तमान’ पर अपना आलोचनात्मक पर्चा पढ़ा। निरंजन बोहा ने संकलन में सम्मिलित रचनाओं का विषयगत आकलन करते हुए कहा कि यह संकलन बदल रहे समय का गवाह है। उन्होंने संकलन में शामिल कुछ रचनाओं की कमजोरियों का भी जिक्र किया। डॉ. कुलदीप सिंह दीप, सूर्यकांत नागर, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, सुकेश साहनी, विक्रमजीत नूर, डॉ. रामनिवास मानव, दर्शन जोगा, जसबीर ढंड व डॉ. शील कौशिक सहित अनेक लेखकों/ आलोचकों ने इस पर्चे पर हुई बहस में अपने विचार व्यक्त किए। चर्चाकारों ने संकलन के संदर्भ में लेखन व आलोचना के महत्व पर भी प्रकाश डाला। इस विचार–विमर्श का समापन डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति ने किया।
इस सत्र में लघुकथा विधा को समर्पित पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका ‘मिन्नी’ के अंक–81 (मंटो विशेषांक) के अतिरिक्त पंजाबी लघुकथा से संबंधित दो अन्य पत्रिकाओं ‘मिन्नी कहानी’ (पटियाला) व ‘अणु’ (लुधियाना) के नए अंकों का विमोचन हुआ। सत्र के अंत में पंजाबी लघुकथा के जाने माने कथाकार श्री हरभजन खेमकरणी को प्रथम ‘रतन सिंह संधू यादगारी मिन्नी कहानी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। अध्यक्ष मंडल के साथ श्री सुरेश शर्मा (इंदौर) ने खेमकरणी जी को सम्मानित किया। सम्मेलन के प्रथम सत्र के संचालन की जिम्मेदारी जगदीश राय कुलरियाँ ने निभाई।
रात्रिभोज के पश्चात सम्मेलन का दूसरा सत्र ‘जुगनुआं दे अंग–संग’ प्रारंभ हुआ। इस सत्र के संचालक श्यामसुन्दर अग्रवाल ने ‘जुगनुआ दे अंग–संग’ कार्यक्रम के उद्देश्य व नियमों की जानकारी दी। पत्रिका ‘मिन्नी ’ की ओर से ‘जुगनुआं दे अंग–संग’ का आयोजन प्रत्येक तिमाही किया जाता है। इस सत्र में रघबीर सिंह महमी (सत्कार),दविंद्र पटियालवी (चेतना),भूपिंद्रजीत मौलवीवाला (नज़रिया), मंगत कुलजिंद (ब‍र्फ़ बनाम पानी), हरप्रीत सिंह राणा (माड़ा बंदा), जगदीश राय कुलरियां (सप्प), बूटा राम चहिलां (खुल्लीआं अक्खां), दर्शन बरेटा (अकृतघन), प्रेम मौलवीवाला (सोच), डॉ् शीील कौशिक (वृट वृक्ष), अमृतलाल मनन (सही समय), राजवीर भलूरिया (लियाकत) , डॉ. शक्ति राज कौशिक(विषैला कीट), रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’ (उड़ान), बालकृष्ण कटोदिया (दस्तावेज), एम.अनवार अंजुम (दुर्घटना), मक्खन सिंह चौहान (गु्रु दक्षिणा), सुरेश शर्मा (प्रार्थना), रणजीत आज़ाद कांझला (सरकारी सहूलियत), परगट सिंह जंबर (अद्धमरे लोक), जसबीर ढंड (धरवास दा धुरा), चमकौर सिंह राड़ा (एहसास), सुरेंद्र कैले (हुणे ही), बंत सिंह चठ्ठा (तोता और मंत्री) , निर्मल सिंह बरेटा (दीया), महिन्द्रपाल मिंधा (इंसानियत), हरभजन खेमकरणी (दूरदर्शी), रूप देवगुण (लक्ष्मी), डॉ. रामनिवास मानव (पत्नी का भविष्य), दर्शन जोगा (अंदरली गल्ल), सूर्यकांत नागर (फल), सुकेश साहनी (राजपथ), श्याम सुंदर अग्रवाल (कुंडली) ने लघुकथा–पाठ में भाग लिया। पढ़ी गई प्रत्येक रचना पर अलग से विचार–विमर्श हुआ। उपस्थित लेखकों/ आलोचकों ने इस विचार–चर्चा में लघुकथाओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस सत्र में सुकेश साहनी, सूर्यकांत नागर, डॉ. रामनिवास मानव, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, रूप देवगुण, सुरेश शर्मा, सुरेंद्र कैले, निरंजन बोहा, हरभजन खेमकरणी, विक्रमजीत नूर, दर्शन जोगा व श्याम सुंदर अग्रवाल द्वारा लघुकथाओं के संदर्भ में लघुकथा विधा पर प्रस्तुत किए गए विस्तृत विचारों से श्रोता बहुत प्रभावित हुए। लघुकथा की बुनावट बहुत कसी हुई होनी चाहिए; लघुकथा के शीर्षक की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए; जो शीर्षक रचना को अर्थ प्रदान करे, वह श्रेष्ठ होता है;शीर्षक रचना के कथ्य का प्रकटीकरण करने वाला न हो रचना के कथ्य व कला, दोनों पक्षों में सुमेल होना चाहिए। लघुकथा में अधिक घटनाएँ नहीं होनी चाहिएं, यदि घटनाएँ एक से अधिक हों तो उनके घटित होने में समय का लंबा अंतराल नहीं होना चाहिए। इन सभी बातों पर लेखक एकमत नज़र आए।
प्रात: 4.00 बजे तक चले इस सत्र की समाप्ति पर प्रिं. दर्शन सिंह बरेटा व डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति ने सम्मेलन में पधारे सभी मेहमानों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।